NEWS Leaders : आज़ादी के दीवाने : स्वतंत्रता संग्राम में निमाड़ के तीन नाथ की रही अहम भूमिका, सेंधवा से भी रहा संपर्क
आज़ादी के दीवाने : स्वतंत्रता संग्राम में निमाड़ के तीन नाथ की रही अहम भूमिका, सेंधवा से भी रहा संपर्क
न्यूज़ लीडर्स : खरगोन
देश के स्वतंत्रता संग्राम में निमाड़ के सपूतों का भी अहम योगदान रहा है। उस दौरान निमाड़ के कई स्वतंत्रता संग्राम सेनानियों ने ब्रिटिश सरकार की कड़ी रणनीतियों का खुल कर और भूमिगत होकर भी लगातार विरोध किया।
ऐसे ही एक स्वतंत्रता संग्राम सेनानी श्री विश्वनाथ खोड़े के पोते उमेश रमाकांत खोड़े ने बताया कि स्वतंत्रता संग्राम के दौरान निमाड़ क्षेत्र में तीन नाथ को आज भी सम्मान के साथ याद किया जाता है। तीन नाथ में दादाजी श्री विश्वनाथ खोड़े, काशीनाथ त्रिवेदी और बैजनाथ महोदय को हमेशा याद किया जाएगा।
▪︎स्वतंत्रता संग्राम में जागरूकता के लिए त्रयी नाथ की भूमिका.》》
निमाड़ में स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में विश्वनाथ खोड़े का नाम अग्रणीय पंक्ति में है। स्वतंत्रता संग्राम आंदोलन में जागरूकता के लिए उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी।उन्होने खादी के महत्व को मूर्त रूप देने व जन-जन तक पहचाने के उद्देश्य से 1934 में खरगोन के निकट ठिबगांव में ग्राम सेवा आश्रम की स्थापना की।
“9 अक्टूबर 1897 को कुक्षी में जन्मे श्री विश्वनाथ खोड़े पिता श्री सखाराम खोड़े बड़वाह नगर के निवासी थे। वे यहां टका-कोड़ी और घी का व्यापार करते थे।”
निमाड़ में स्वतन्त्रता आंदोलन को बढाने के लिए 1932 से 1939 तक मासिक पत्रिका वाणी का प्रकाशन प्रारम्भ किया। भारत छोड़ो आंदोलन देशव्यापी स्वरूप धारण करने लगा तो खरगोन जिले में विश्वनाथ खोड़े के नेतृत्व में यह आंदोलन उग्र स्वरूप धारण करने लगा। मण्डलेश्वर में इस आंदोलन का नेतृत्व अपने सेनानी साथी बैजनाथ के साथ नेतृत्व कर 20 से 25 साथियों के साथ गिरफ्तारी दी थी।
गिरफ्तारी के बाद साथियों सहित सभी आंदोलनकारियों को सेंधवा थाने भेज दिया। इनके बाद मण्डलेश्वर और फिर इंदौर सेंट्रल जेल में इन्हें रखा गया। इंदौर जेल में ही तीनों नाथों ने 1942 में इंदौर राज्य खादी संघ की स्थापना की और तीन हजार रुपये की पूंजी से जेल में कताई का काम शुरू किया। निमाड़ की जनता ने आपकेे रुप मे गांधी को देखा और वे आगे चलकर निमाड़ के गांधी कहलाये।
▪︎स्वतंत्रता आंदोलन में भूमिका के लिए काशीनाथ को धर्मपत्नी ने किया प्रेरित.》》
श्री काशीनाथ त्रिवेदी-आपका जन्म 16 फरवरी 1906 में धार जिले में हुआ। आपकी प्रारम्भिक शिक्षा बड़वानी में पूरी हुई। इसके बाद शिक्षा के लिए उज्जैन और इंदौर गए। इसके बाद 1929 में साबरमती आश्रम चले गए। यहां 1931 तक हिंदी की नवजीवन पत्रिका का साहित्यिक संपादन किया।
आपके द्वारा श्री पट्टाभिसीतारमैया के दौरे के समय आपने ही दुभाषिये की भूमिका निभाई। आपने ही धर्मपत्नी श्रीमती कलावती त्रिवेदी को भी स्वतंत्रता आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद कंधे से कंधा मिलाकर स्वाधीनता आंदोलन में जीवन पर्यंत सक्रिय रहे।
▪︎बैजनाथ गाँधीजी की नवजीवन पत्रिका का प्रकाशन करने लगे.》》
श्रीबैजनाथ महोदय का जन्म 11 मई 1897 को मण्डलेश्वर में हुआ था। उनके पिताजी तिलक जी के विचारों और कार्याें से प्रभावित थे। परिवार में देश के स्वतंत्रता आंदोलन से जुड़ी चर्चाओं के कारण बैजनाथ पर भी गहरा प्रभाव पड़ा।
बीए की उपाधि पूरी के बाद गाँधीजी के रंग में ऐसे रंगे की सक्रिय राजनीति में आये और गाँधीजी के अनुयायी बन गए। इस समय उनकी शिक्षा विभाग में नौकरी लग गई तो खरगोन चले आये।
लेकिन एक माह में ही त्यागपत्र देकर अहमदाबाद चले गए। जहां आपने गाँधीजी के हिंदी नवजीवन पत्रिका का कार्य अपने हाथों में ले लिया। यहां अंग्रेजी की यंग इंडिया की 25 हजार प्रतियां प्रकाशित हो रही थी। वही नवजीवन की 35 हजार प्रतियाँ प्रकाशित होने लगी। गाँधीजी के जेल चले जाने के बाद आप बापूजी से अनुमति लेकर आप सेंधवा आ गए। यहां आदिवासियों की सेवा के लिए सेंधवा के निकट मेरखेड़ी में आदिवासी आश्रम खोला। जहां आदिवासी बच्चों की शिक्षा दी जाती थी।