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News Leaders : विश्व रंगमंच दिवस’ का इतिहास, क्यों मनाया जाता है, मप्र में रंगमंच

प्रसंगवश : विश्व रंगमंच दिवस’ का इतिहास, क्यों मनाया जाता है, मप्र में रंगमंच स्थिति पर प्रस्तुति देखिये

“दुनिया एक रंगमंच है और हम इस रंगमंच के किरदार,कला और संस्कृति को बढ़ावा देने के लिए हर साल 27 मार्च को मनाया जाता है विश्व रंगमंच”

आनंद फिल्म का शानदार सीन, देखिये विश्व रंगमंच दिवस के अवसर पल

प्रसंगवश_विश्व रंगमंच दिवस : न्यूज़ लीडर्स

देखिये, शानदार प्रस्तुति

हर साल पुरे विश्व में 27 मार्च यानी आज के दिन  ‘विश्व रंगमंच दिवस’ मनाया जाता है। रंगमंच एक ऐसा माध्यम है जहां से हम अपनी बात कई हजारों लाखों लोगों तक पहुंचा सकते है। रंगमंच मनोरंजन का सबसे पुराना माध्यम है। खासकर, बता करें हमारे  भारत देश की तो, आप जानते ही हैं कि, हम लोग मनोरंजन और कला के प्रति बहुत दीवाने हैं।

बता दें कि पहले सिनेमा नहीं होता था, एंटरटेनमेंट के लिए लोगों के पास थियेटर यही एकमात्र विकल्प था। आज भी हम सबके लिए थिएटर का महत्व कम नहीं हुआ है।

▪︎विश्व रंगमंच दिवस का उद्देश्य.》

‘विश्व रंगमंच दिवस’ मनाने के कई महत्वपूर्ण उद्देश्य है, पूरी दुनिया के समाज और लोगों को रंगमंच की संस्कृति के विषय में बताना, रंगमंच के विचारों के महत्व को समझाना, रंगमंच संस्कृति के प्रति लोगों में दिलचस्पी पैदा करना और इससे जुड़े लोगो को सम्मानित करना है। इसके अलावा विश्व रंगमंच दिवस मनाने कुछ अन्य उद्देश्य ये है, जैसे कि, दुनिया भर में रंगमंच को बढ़ावा देने, लोगों को रंगमंच की जरूरतों और इम्पोर्टेंस से अवगत कराना, रंगमंच का आनंद उठाया और इस रंगमंच के आनंद को दूसरों के साथ शेयर करना,  इन सभी उद्देश्यों की पूर्ति करने के लिए करने के लिए यह दिन पुरे विश्वभर में मनाया जाता है।  

▪︎इतिहास के झरोखे में भारत का रंगमंच.》

भारत के महान कवि कालिदास जी ने भारत की पहली नाट्यशाला  में ही ‘मेघदूत‘ की रचना कि थी। भारत की पहली नाट्यशाला अंबिकापुर जिले के रामगढ़ पहाड़ पर स्थित है, जिसका निर्माण कवि कालिदास जी ने ही किया था। आपको बता दें कि भारत में रंगमंच का इतिहास आज का नहीं बल्कि सहस्त्रों साल पुराना है।

आप इसके प्राचीनता को कुछ इस तरह से समझ सकते हैं कि, पुराणों में भी रंगमंच का उल्लेख यम, यामी और उर्वशी के रूप में देखने को मिलता है।  इनके संवादों से ही प्रेरित होकर कलाकारों ने नाटकों की रचना शुरू की। जिसके बाद से नाट्यकला का विकास हुआ और भारतीय नाट्यकला को शास्त्रीय रूप देने का कार्य भरतमुनि जी ने किया था। 

▪︎भारतीय रंगमंच कर्मी गिरीश कर्नाड को भी मिला मौका.》

सबसे पहले 1962 में फ्रांस के जीन काक्टे ने विश्व रंगमंच दिवस के दिन अपना संदेश दुनिया के सामने रखा था। वहीं भारत की बात की जाए तो साल 2002 में यह मौका मशहूर भारतीय रंगमंचकर्मी गिरीश कर्नाड को मिला था।

▪︎और अंत में.》

दुनियाभर में सबसे पहले नाटक का मंचन पांचवीं शताब्दी के शुरुआती दौर में एथेंस में हुआ था। इस नाटक का मंचन एथेंस के एक्रोप्लिस के थिएटर ऑफ़ डायोनिसस में किया गया था।

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