“साधना के लिए गुफाओं, कंदराओं और कुटिया में रहना इन सन्यासियों का अपना निर्णय है और उनकी साधना को पूर्ण करने में पुलिस प्रशासन, स्थानीय लोग, आश्रम और दानदाता भी कोई कसर नहीं छोड़ते हैं। राशन से लेकर गर्म कपड़ों तक की व्यवस्था इन संन्यासियों के लिए की जाती है।”
न्यूज़ लीडर्स डेस्क
गंगोत्री धाम के कपाट बंद कर दिए गए जो अगले वर्ष गर्मियों में अक्षय तृतीया को खुलेंगे। यहां इतनी ज्यादा ठंड है कि देवताओं के सेवक भी मंदिर के पास हर्षिल में स्थित मुखबा गांव में पहुंचा दिए जाते हैं।
लेकिन शून्य से नीचे के तापमान में यहां 52 योगी-संयासी रहने आए हैं। यह पहली बार नहीं है, ये सदियों से सर्दियों में इस निर्जन एकांत में ईश्वर को खोजने आते रहे हैं जो माइनस 30 डिग्री सेल्सियस में 6 महीने गंगोत्री में करेंगे।
उत्तरकाशी के पुलिस अधीक्षक अर्पण यदुवंशी ने बताया कि इस साल 52 साधु गंगा के उदगम गंगोत्री घाटी में शून्य से नीचे तापमान में ध्यान करने के लिए आ चुके हैं। महामारी के चलते वर्ष 2020 और 2021 में गंगोत्री घाटी में कोई साधु-संत नहीं आया था। सदियों बाद यह परंपरा टूटी थी।
देवभूमि उत्तराखंड अद्भुत साधुओं की तपोभूमि है। यहां की गुफाओं में आज भी ऐसे योगी हैं तो -5 से -30 डिग्री सेल्सियस के तापमान में यहां रहकर तपस्या करते हैं। इनके एकांत में इनके साथ होती हैं मां गंगा की बर्फीली लहरें। इस समय तो ये लहरें भी बर्फ में जम जाती हैं।
“ये साधू हमेशा ही पहाड़ों में नहीं रहते हैं। ये लोग कभी उत्तरकाशी में भी आ जाते हैं तो कभी आश्रम में रहते हैं। यहां धाम के कपाट बंद होने के बाद भी लोग मंदिर के बाहर से और मां गंगा के दर्शन के लिए आ रहे हैं।”
समुद्र तल से 4600 मीटर की ऊंचाई पर स्थित तपोवन में इस बार तीन साधु और 3800 मीटर की ऊंचाई पर एक साधु शीत साधना में निमग्न हैं। यह प्राण साधना निर्जन उच्च हिमालयी इलाके में शून्य तापमान के नीचे पूरे शीतकाल जारी रहेगी। यहां करीब एक दशक बाद साधनारत सन्यासियों की संख्या तपोवन में दो से बढ़कर तीन हुई है, जबकि पूरी गंगोत्री घाटी की कंदराओं में साधना करने वाले साधु सन्यासियों की संख्या 52 पहुंची है।
“यह पर दिन में मुश्किल से एक से डेढ़ घंटे के लिए धूप आती है। फिर रात के समय माइनस 14 डिग्री सेल्सियस टेम्प्रेचर हो जाता है। दिन के समय भी माइनस पांच डिग्री तापमान रहता है। तप करने वाले साधु कहते हैं कि यहां रहने की क्षमता तो अपने शरीर में होती हैं। थोड़ी बहुत कम ज्यादा हो जाती है तो गंगा मैया हैं, वे अपने बच्चों का पूरा ध्यान रखती हैं।”
गौरतलब है की पुराने जमाने से घाटी साधुओं की पसंदीदा जगह रही है और दो साल के बाद इतनी बड़ी संख्या में वे लौटे हैं। इस बार 47 साधु बर्फ से ढंकी गंगोत्री में, तीन तपोवन में और एक-एक भोजवास और कांखू में ध्यान कर रहे हैं। पुलिस द्वारा इनकी संख्या का सत्यापन कर लिया गया है।
धाम और उससे ऊपर की पहाड़ियों की गुफाओं में रहने वाले साधू-संतों के लिए प्रशासन की ओर से पूरी व्यवस्था की जाती है। इसके अलावा जिस तरह की जरूरत होती है उसके लिए थाना हर्षिल से व्यवस्था कराई जाती है।
◇_और अंत में.-》》
एसडीएम चतर सिंह चौहान कहते हैं कि हमारे पास पचास से साठ के बीच की सूची तपोवन से गंगोत्री तक रहने वाले साधुओं की है। यदि इमरजेंसी में वे लोग प्रशासन से कोई सहयोग मांगते हैं तो हम मदद करते हैं बाकी उनकी अपनी व्यवस्था रहती है। वन विभाग, पुलिसकर्मी उनका पूरा सहयोग करते हैं।